रामायण का प्रभाव पर निबंध | Essay on Effect of Ramayan in Hindi!

जिस प्रकार वेदों और शास्त्रों ने मनुष्य को उसे कल्याण के लिए नाना प्रकार के मंत्र प्रदान किये उसी प्रकार रामायण ने मानव मात्र के लिए एक आदर्श आचार संहिता प्रदान की ।

जीवन को विभिन्न परिस्थितियों में मनुष्य को किस प्रकार आचरण करना चाहिए, रामायण इस के लिए आदर्श ग्रंथ है । सर्वप्रथम रामायण की रचना कविवर वाल्मीकि ने की थी । तदुपरांत राम के जीवन को आधार बनाकर अनेक राम-काव्य लिखे गये । हिन्दी में भी तुलसीदास ने ‘रामचरितमानस’ जैसे अद्वितीय महा-काव्य की रचना की ।

रामायण के चरित नायक भगवान राम है । जो पूर्ण ब्रह्म हैं । दशरथ और कौशल्या के पुत्र के रूप में उन्होंने धरती पर अवतार लिया । वे मर्यादा पुरुषोत्तम हैं । वाल्मीकि और तुलसीदास दोनों ने ही उनकी जीवन-गाथा का अत्यंत पवित्र भाव से अंकन किया है ।

रामचरित-मानस में जीवन के विविध प्रसंगों के मध्य रामचन्द्र जी का जो रूप उभर कर आया है वह प्रात: स्मरणीय है । सभी पात्रों का चित्रण उच्चस्तरीय है । परिवार, समाज और राष्ट्र सभी स्तरों पर राम का चरित आदर्श की सीमा है ।

उन्होंने पिता की आज्ञा का पालन करने के लिए राज वैभव का त्याग कर वन का मार्ग लिया । महाभारत में जहाँ राज्य के लिए दुर्योधन ने रक्त की नदियाँ बहा दीं, राम ने बिना किसी हिचक के पल भर में उसका परित्याग कर दिया ।

दूसरी ओर भरत ने उन की पादुकाएँ लेकर सेवक- भाव से तभी तक राज्य का भार धारण किया, जब तक वे वन से लौट नहीं आये । आज जब भाई, भाई का सिर काटने को तैयार है, रामायण के प्रचार और प्रसार की विशेष आवश्यकता है, जिससे लोग सम्पत्ति की निरर्थकता समझ सकें ।

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सीता ने आदर्श पत्नी, लक्ष्मण ने आदर्श भाई, दशरथ ने आदर्श पिता का जो रूप सामने रखा वह सर्वत्र अनुकरणीय है । राम ने जटायु, शबरी, निषाद, सुग्रीव, हनुमान आदि को जो सम्मान दिया वह उन की उदार हृदयता का प्रमाण है ।

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वनवास के समय ऋषियों के आश्रम में जाकर उन्हें सम्मान दिया । राक्षसों का विनाश किया और तपोवनों को भयमुक्त किया । रावण के द्वारा सीता हरण कर लिए जाने पर भयंकर युद्ध किया । न केवल सीता को पुन: प्राप्त किया अपितु रावण का सर्वनाश किया और उस के स्थान पर विभीषण का तिलक किया । अपनी शरण में आये विभीषण और सुग्रीव को अभयदान देकर शरणागत धर्म निभाया ।

सुग्रीव के प्रति मित्रता का जो आदर्श तुलसीदास ने चित्रित किया है, वही आदर्श है- लोक मर्यादा की रक्षा के लिए निष्कलंक पत्नी का परित्याग कर के प्रजा के सामने आदर्श राजा का रूप प्रस्तुत किया । आज भारतीय जीवन में यदि आदर्श की कुछ मर्यादा बची है, तो उस का कारण रामायण ही है । वैसे तो आज चारों ओर भ्रष्टाचार और पतनोन्मुखी भावनाएँ पनप रही हैं परन्तु जो लोग रामायण और रामचरितमानस का पाठ करते हैं, वे आज भी इन बुराइयों से बचे हुए हैं ।

आज भी तनिक सी आपत्ति आते ही हम ‘रामायण का अखंड पाठ’ अथवा ‘सुन्दर कांड’ का पाठ करते हैं । ‘रामायण’ सीरियल ने एक बार पुन रामादर्श को पुन: रामदर्श को पुन: प्रस्तुत करने का स्तुत्य कार्य किया ।

हमें चाहिए जब भी हमारे सामने किसी प्रकार का संकट हो, हम रामायण से मार्गदर्शन और प्रेरणा लें । हम अवश्य ही सब प्रकार की आपत्तियां पर विजय प्राप्त कर सुख को प्राप्त करेंगे ।

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